बुधवार, 25 सितंबर 2013

नाकाम सी ख्वाहिश

कल तुम्हारे इश्क का पैमाना, इस कदर भर गया कि, मैं... छलक कर जमीन पर आ गिरी..... तुमने देखा मुझे गिरते हुए, बेसाख्ता चाहा समेटना मुझको, अपने लबों से लगाना मुझको, मैं इतने में ही खुश थी कि, मुझे समेटने कि नाकाम सी ही सही, कोशिश तो कि तुमने .. आज तुम्हारा पैमाना खाली है, तुम तलबगार हो ,एक बूँद के लिए तुम्हे उस रोज जमीन पर, छलक कर गिरी मेरी याद तो आई, मैं इतने में ही खुश हूँ कि , मेरी नाकाम सी ख्वाहिश आज भी है तुम्हें...........

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