बुधवार, 25 सितंबर 2013

सुर्ख गुलाब रखता है.

वो हर एक शाम चिरागों को बुझा के रखता है, हर एक रात वो इंतजार- ए- माहताब रखता है.. हर एक रात की पहर जो गुजारी जाग कर उसने , कैसा आशिक है हर एक पहर का हिसाब रखता है.. हर सवाल मेरे हिस्से मे डाल कर बैठ जाता है, मै जानती हूँ की वो हर एक जवाब रखता है.. वो अपने हिस्से की खुशियाँ शहर में बाँट आता है, इसी में खुश है की वो अहले सबाब रखता है.. बड़े हैरान है फ़रिश्ते रोज मेरी कब्र देखकर , वो कौन कब्र पर मेरी रोज सुर्ख गुलाब रखता है..

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