बुधवार, 25 सितंबर 2013

हे राम ! मत आना कभी तुम यहाँ .

मत छुओ मेरे दर्द को , दर्द और होगा, मत सहलाओ मेरे ज़ख्मो को , घाव अभी फिर रिसने लगेंगे , मत हवा दो अपनी सांसों की, मेरी आँहो से धुंआ उठने लगेगा, रोक लो नज़रों को अपनी, मुझसे टकराने से, मै बरस जाऊँगी, जल भरी बदली की तरह, हे राम ! मत आना कभी तुम यहाँ . मै शिला सी यहीं पर रह पडूँगी , मै अगर पाषाण सी जडवत रही, अनुभूतियों से सौ कोस दूरी पर रहूंगी, गर बनी नारी अहिल्या, फिर नई कोई पीड़ा सहूंगी.

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