बुधवार, 25 सितंबर 2013

कुछ कुंवारे ख्वाब

कुछ कुंवारे ख़्वाब सीने में पल रहे हैं । कुछ बुझ चुके है जल कर कुछ अब भी सुलग रहे हैं।। कुछ ताज़ा -तर खराशें रूहों की सिसकती हैं। कुछ ज़ख्म भी पुराने रह-रह उभर रहे हैं।। कुछ फैसले अधूरे दम तोड़ने लगे हैं। कुछ चीखते सन्नाटे रातों को डस रहे हैं॥ कुछ रिश्ते हो चुके हैं बासी कुछ ताज़ा हो रहे हैं। कुछ फूल खिल रहे हैं कुछ खिल के झर रहे हैं॥ कुछ गर्द पड़ चुकी थी ख्यालों के पुलिंदों पर। कुछ पांव के निशान अब उनको कुचल रहे हैं॥ कोई राह थक चुकी है मेरा इंतजार करके। कुछ लोग अजनबी उस रस्ते गुज़र रहे हैं॥

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