बुधवार, 25 सितंबर 2013

हौसलों का जतन

थोड़ा सा हौसलों का जतन हो गया होता । हम घर जो बनाते तो वतन हो गया होता ॥ अच्छा है कि बहुत दूर आदमी से चाँद है । होता जमीन पर तो दफ़न हो गया होता ॥ वो इस तरह रुसवा सरे बाजार न होता । दिल कि जगह भी काश ज़हन हो गया होता ॥ इन इश्क के पन्नों में इबारत नई होती । आकाश से धरती का मिलन हो गया होता ॥ दोस्त तो दोस्त दुश्मनों का नशेमन न उजड़ता । गर जंग के बजाय अमन हो गया होता॥ दुनिया में तिजारत का दस्तूर बदलता । सिक्कों कि जगह दिल का चलन हो गया होता॥ मैं मिला हूँ खाक में , मुझे बस इतना रंज है । मेरे साथ हसरतों का कफ़न हो गया होता॥

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