बुधवार, 25 सितंबर 2013

आंसू

ख्वाहिशों की कब्र पर यह कौन................ ख्वाबों की चादर......... चढा गया जिस चादर में टांके......... मोंती कुछ तेरी आंखों वाले......... कुछ मेरी आँखों वाले ......

स्मृतियों के पल

स्मृतियों के पल ......... बिन आहट बिन दस्तक चले आते है ......... विचारों की वेणियों में गूंथकर दे जाते है एक मधुर मुस्कान जो भरती है जीवन में रंग सांसो की मियादें कुछ और बढ़ जाती है बढ़ती उमर की बढ़ती झुर्रियां और दवा की खुराकें कुछ और कम हो जाती है।

कसूर

यह जो जिंदगी का उसूल है। बड़ा बदमजा औ फिजूल है ॥ गर इश्क करना गुनाह तो । अपना गुनाह कबूल है॥ बैठूं मै किसकी छांव में । हर शै दरख्ते बबूल है॥ कांटे बिछाये जो उम्र भर। मरने पे लाये वो फूल है॥ इन ख्वाहिशों की उम्र क्या । सब हसरतों का कसूर है ॥

एक दीवाना

चुपके - चुपके नजर मिली जब एक जमाना वो भी था॥ कदमो तले जो दिल रखता था एक दीवाना वो भी था ॥ चाँद पे अपना घर होता था ख्वाब सुहाना वो भी था ॥ आँखों से दोनों पीते थे एक मयखाना वो भी था ॥ ख्वाब में हर शब् हम मिलते थे एक ठिकाना वो भी था ॥ पल भर में जो राहत दे -दे दर्द पुराना वो भी था॥

कुछ कुंवारे ख्वाब

कुछ कुंवारे ख़्वाब सीने में पल रहे हैं । कुछ बुझ चुके है जल कर कुछ अब भी सुलग रहे हैं।। कुछ ताज़ा -तर खराशें रूहों की सिसकती हैं। कुछ ज़ख्म भी पुराने रह-रह उभर रहे हैं।। कुछ फैसले अधूरे दम तोड़ने लगे हैं। कुछ चीखते सन्नाटे रातों को डस रहे हैं॥ कुछ रिश्ते हो चुके हैं बासी कुछ ताज़ा हो रहे हैं। कुछ फूल खिल रहे हैं कुछ खिल के झर रहे हैं॥ कुछ गर्द पड़ चुकी थी ख्यालों के पुलिंदों पर। कुछ पांव के निशान अब उनको कुचल रहे हैं॥ कोई राह थक चुकी है मेरा इंतजार करके। कुछ लोग अजनबी उस रस्ते गुज़र रहे हैं॥

गिला नही करते

चलो हटाओ हर एक बात का , गिला नहीं करते।.................. हमें ख़बर है की वो अब भी , हम पे शैदा हैं । यह और बात है हंस कर, मिला नहीं करते ॥ चलो हटाओ................... न तोडिये कभी बागों से , खिलते फूलों को । बिछड़ के शाख से फ़िर गुल , खिला नहीं करते ॥ चलो हटाओ......................... है दिल में खौफ कहीं , इश्क की रुसवाई न हो । नाम महबूब हथेली पे , लिखा नही करते।। चलो हटाओ ...................... नहीं वाजिब उनको अपना, हमसफ़र कहना। जो राह-ऐ-इश्क पे ताउम्र , चला नहीं करते ॥ चलो हटाओ .

जाने क्यों

जाने क्यों ? घर की दहलीज़ लाँघते ही, हम सब चिपकाते हैं अपने ही चेहरे पर एक मुखौटा ..................... जो सर्वथा अपरचित है भिन्न है हमसे घर से निकलने से पहले चिपकाते हैं होंठो पर एक मस्त स्माइल ........... जो हमारी होती ही नही लगता है,फटी कथरी में मखमल की चकती इस्त्री किए कपड़े , करीने से लगी क्रिजें लेकिन उसके नीचे आत्मा पर कितनी खरोंचे होंगी गिना नही जा सकता सभ्य कहलाने के लिए बालों को सलीके से सजाते -सजाते कब असभ्यता की परिधि से बाहर आ गए पता ही नही चला, घर की दहलीज़ लांघने से पहले कभी आइना देखना नही भूलते अपना ही प्रतिबिम्ब अजनबी सा लगता है

ख़बर न लगी

तारा मंडल से बिछड़ कर माँ की पीड़ा में पीड़ित हो , कब धरती पर उतर चली ख़बर न लगी । आह विधाता ! सुन समेत स्वर थोड़ा सा बस सिहर चली खबर न लगी । बचपन में ही हुई किशोरी, और किशोरपन में युवती, ऐसा लगता है मैं पीछे , मुझसे आगे मेरी उमर चली ख़बर न लगी। आँखों से नापते - नापते, आसमान की उचाइयां , तुम्हारे ह्रदय की गहराई में, जाने कब मैं उतर चली, ख़बर न लगी। उड़ते उड़ते हवा के संग, डोर से टूटी हुई पतंग , तुम्हारे आँगन में कब आ गिरी ख़बर न लगी। तुम्हारे वंश वृद्धि के लिए मृत्यु की पतली पगडंडियों से , कितनी बार गुजर कर जीवन की राह में जा मिली ख़बर न लगी । तुम्हारे घर के तिनके - तिनके जोड़ती कब त..

चाहत





                                बस इतना फर्क है मेरी उनकी चाहतों में । वो गम -ऐ -

तूफां 

से गिर गए हम अब भी लड़ रहे हैं ॥

मुझे झूठ कोई बता गया

रहा उम्र भर जो अजनबी। इक पल में अपना बना गया॥ मैं लज्ज़ते बेगुनाह हूँ । तहरीर कोई लिखा गया॥ वो दर्द अपना सा लगा । कोई आप बीती सुना गया॥ तेरी जिंदगी का थी एक सच। मुझे झूठ कोई बता गया।। कभी ख्वाब बन जहां मैं पली। वहीँ आंसुओं में बहा गया॥ जो चराग बन दिल में जला । वही रौशनी को बुझा गया ॥ वो जगा रहा सारी रात भर । मुझे थपकियाँ दे सुला गया॥ ए वफ़ा किसी के तो काम आ। तुझे आज फ़िर कोई बुला गया ॥

दिलं कि गली से

दिल की गली से कोई गुज़र कर चला गया , ऐसा मिला मुझे कि बिछड़ कर चला गया॥ सुनते थे इश्क में है शराबों सा कुछ मज़ा , ऐसा चढा नशा कि उतर कर चला गया॥ दुनिया कि अदालत में जो पेशी मेरी हुई, मेरा गवाह मुझसे मुकर कर चला गया॥ जिसके हज़ार सदके मेरी सादगी पे थे, निकला बाज़ार में तो संवर कर चला गया॥ ऐसा नहीं कि हश्र-ऐ -मोहब्बत नहीं पता, कमबख्त बड़ा दिल था मचल कर चला गया॥ मुझ पर हुआ मेहरबान मेरा सय्याद इस कदर, पिंजरा तो खोला पंख क़तर कर चला गया॥ अल्लाह मेरे और मुझे जिंदगी न दे , जितनी मिली मैं सबको बसर कर चला गया॥

बस धुंवा अवशेष है ।

दोनों की नज़रें आपस में लड़ी चकमक पत्थर की तरह, इश्क की आग जली, एक दीप मैंने बाला प्रेम का ............................. एक दीप तुमने बाला , प्रेम का ............................. परिस्थितियों का दानव , प्रेम के दीपक का खून चुपचाप पीता रहा , लौ तड़पकर बुझ गई , बस धुँआ अवशेष है ।

दोज़ख

कुछ इस तरह से यारों सताया गया हमें । अपने ही घर में गैर बताया गया हमें॥ गिनने को उम्र भर ये फफोले तो कम न थे। मरने के बाद फ़िर क्यों जलाया गया हमें॥ हमने सनम के बुत को जो अपना खुदा कहा। काफिर के नाम से ही बुलाया गया हमें॥ जो डूबते भंवर में तो शिकवा नही करते। साहिल पे लाके यारों डुबाया गया हमें॥ ऐसे न चढ़ गया तेरी मस्जिद की सीढियां। दोज़ख के नाम से था डराया गया हमें॥

बताता नही कोई

मैं कौन हूँ ये मुझको बताता नहीं कोई । ले कर के मेरा नाम बुलाता नहीं कोई॥ माना की कश्तियों का मुक़द्दर है डूबना। क्यों डूबने वालों को बचाता नहीं कोई॥ कैसा अजीब शहर है कैसे यहाँ के लोग। रोते हुए को यारों हँसाता नहीं कोई॥ एक दिन मिला जो इश्क तो उसने किया बयां । बरसों हुए हैं मेरी गली आता नहीं कोई॥ नाराज़ हों खुदा तो कयामत का खौफ हो। मैं रूठता हूँ मुझको मनाता नहीं कोई॥ यूँ तो है बाज़ारों में हर एक चीज मुहय्या। खुशियों की दुकानों को सजाता नहीं कोई॥ क़दमों के निशा मेरे भीड़ ने मिटा दिए । हाथों की लकीरों को मिटाता नहीं कोई॥

हौसलों का जतन

थोड़ा सा हौसलों का जतन हो गया होता । हम घर जो बनाते तो वतन हो गया होता ॥ अच्छा है कि बहुत दूर आदमी से चाँद है । होता जमीन पर तो दफ़न हो गया होता ॥ वो इस तरह रुसवा सरे बाजार न होता । दिल कि जगह भी काश ज़हन हो गया होता ॥ इन इश्क के पन्नों में इबारत नई होती । आकाश से धरती का मिलन हो गया होता ॥ दोस्त तो दोस्त दुश्मनों का नशेमन न उजड़ता । गर जंग के बजाय अमन हो गया होता॥ दुनिया में तिजारत का दस्तूर बदलता । सिक्कों कि जगह दिल का चलन हो गया होता॥ मैं मिला हूँ खाक में , मुझे बस इतना रंज है । मेरे साथ हसरतों का कफ़न हो गया होता॥

टूटे लकडी के पुल जैसे

दिल की बातें तुम कह जाते । हम सुनते और चुप रह जाते॥ यूँ तो पत्थर सा दिखता हूँ । तुम छूते तो हम ढह जाते॥ टूटे लकडी के पुल जैसे। साथ नदी के हम बह जाते॥ मेरे ज़ख्म पे हैरां ना हो। और अगर होता सह जाते॥ सारे राज़ उगल देता मैं। गर तुम दिल की तह तक जाते॥ यूँ तो एक हमारी मंजिल। जाने किस रस्ते वह जाते॥

जी भर नही देखा

कैसे करूँ यकीं मैं खुदा के वजूद का । जिस शख्स को हमने कभी छूकर नही॥ ऊँची इमारतों पे नज़र ठहर गई है। लेकिन किसी ने नींव का पत्थर नही देखा॥ हर इम्तहाँ में वक्त के नाकाम मै रहा। दुनिया की जो किताब थी पढ़कर नही देखा॥ घर से चले थे साथ हयात-ऐ सफर पे हम। गुम हो गया वो भीड़ में रुक कर नही देखा॥ लगता है जागना है मुझे आज रात भी। अरसे हुए हैं नींद ने बिस्तर नही देखा॥ आए हैं कुछ फ़रिश्ते ले जाने को मुझे। हसरत यही रही तुम्हे जी भर नही देखा॥

ढूंढ रहे हैं.

हम जिंदगी जीने का हुनर ढूंढ रहे हैं। नादान है सहरा में शज़र ढूंढ रहे हैं॥ लौट आती है हर चेहरे को पढ़ कर मेरी नज़रे। जो हमको पढ़े हम वो नज़र ढूंढ रहे हैं॥ पीकर जिसे हज़ार ख्वाहिशों की मौत हो। अब हर दुकान पर वो ज़हर ढूंढ रहे हैं॥ नोटों के बदले क्या नही बेचा गया है आज। अखबार के पन्नों में ख़बर में ढूंढ रहे हैं॥ ले जा के हमको किस जगह पे दफन किया है। अब तक नही मिली है कबर ढूंढ रहे हैं॥ मुझ जैसे और भी गरीब लोग शहर के। अपने ही घर में अपनी कदर ढूंढ रहे हैं॥

चांदी के चमकीले फूल

हर रात .......... स्याह आसमान के पेड़ पर, हजारों चाँदी के , चमकीले फूल खिलते हैं । मन यही कहता है, सुबह के आने के पहले, इनके मुरझाने के पहले, इन्हे तोड़ कर, घर के गुलदस्ते में सजा दूँ, पर तभी ये सोच कर ........... हाथ रुक जाते हैं कि, कल फ़िर रात आएगी, चांदी कि चमकीले फूल फ़िर चमकेंगे....... स्याह आसमान कि पेड़ पर॥

मौन स्वीकृति

एक छत के नीचे रहकर, दोनों बरसों से अपरिचित, भिन्न एक दूजे से लेकिन, एक दूजे को समर्पित। आह भी है, चाह भी है, शीत भी है, दाह भी है, मंजिले क्यों कर मिले, हमराह भी गुमराह भी हैं। ''संवेदना की वेदना से हो रहे है क्यों अचंभित'' . व्यर्थ के बंधन में ढूंढे , अर्थ अपनी जिंदगी का किश्तों- किश्तों- में चुकाते क़र्ज़ अपनी जिंदगी का । ''भाग्य के निर्णय ने पायी आज फ़िर एक मौन स्वीकृति ''

वक्त था चलता रहा

जिंदगी ठहरी रही और वक्त था चलता रहा। मैं गए बरसों की तरह हाथ बस मलता रहा॥ हम अंधेरों में उलझ कर रास्ता भूला किए। कब खिला सूरज न जाने और कब ढलता रहा॥ वक्त पर बरसा था सावन प्यास धरती की बुझी। एक मैं था बारिशों की बूँद में जलता रहा॥ इस कदर तन्हाई मुझको रास अब आने लगी। अपनी परछाईं से भी मैं भागता छुपता रहा॥ ख्वाहिशों ने ख्वाब ने जब आखिरी हिन्च्की भरी। मई खड़ा बेबस उन्हें फ़िर देर तक तकता रहा॥ क्या दिखाएँ क्या छिपायें दिल के ज़ज्बातों को हम। जाने कितने हिस्सों में मैं टूटता बंटता रहा॥

मुझे दूसरों की ख़बर कहाँ

क्या मैं बताऊँ मैं कैसा हूँ? बिल्कुल तेरे ही जैसा हूँ॥ तुम गम से घबरा जाते हो । मैं गम में भी हंस देता हूँ॥ तुम दुनिया से कह देते हो। मैं दुनिया की सुन लेता हूँ॥ तुम जिन जिन राहों से गुजरे । मैं उस मोड़ पे रुक लेता हूँ॥ तुम पलकों में ठहर गए और॥ मैं आंखों से बह लेता हूँ॥ तुम जी जी कर मर लेते हो। मैं मर मर कर जी लेता हूँ॥ तुम नाज़ुक इक फूल के जैसे। मैं काँटों सा चुभ लेता हूँ॥ तू रोशन एक चाँद की तरह । मैं पन्नों में रह लेता हूँ॥ क्या मैं बताऊँ मैं कैसा हूँ? बिल्कुल तेरे ही जैसा हू.............

कभी मैं खराब था ..

मालिक मेरे मुझ पर हुआ कैसा अज़ाब था, कभी वक़्त था बुरा तो कभी मैं खराब था .. एक-एक जुड़े तो एक हुए टूटे तो कुछ नहीं, तालीम-ए-इश्क में बड़ा सीधा हिसाब था.. हर मोड़ पर खड़े थे तुम सवाल सौ लिए, एक मैं जो रोज ही की तरह लाजवाब था.. हर एक हरफ़ मेरा पढ़ा समझा नहीं कोई, गोया था मैं के या कोई आधी किताब था.. रुकिए कदम जमीन पर आहिस्ता दीजिये, यहीं पर कहीं गिरा मेरा एकलौता ख्वाब था.. ज़न्नत-नशीं हुए जो हम दुनिया ये कह पड़ी, इसने किया था इश्क ये इसका सबाब था..

जब भी उनसे निगाह मिलती है.

जब भी उनसे निगाह मिलती है. बेखुदी में पनाह मिलती है.. आँख से आँख क्यों मिलाते हो. आँखों से दिल की राह मिलती है.. जिंदगी तुझको हर तरफ ढूंढा. अपनी हालत तबाह मिलती है.. प्यार कर के भी हमने देख लिया. सिर्फ होंठों पे आह मिलती है.. उनके पहलु में आज भी हमको. लज्ज़ते बेगुनाह मिलती है.

पैबंद

जिंदगी कितने पैबंद लगाऊं तुझमे. फिर भी कुछ कुछ फटा सा रह गया.. एक सीधी डगर क्यों नहीं मिलती. शहर गलियों में बंटा सा रह गया.. सर चीजे दुकानों से खरीद कर लाया. आज भी कुछ घर में घटा सा रह गया.. सर्द रातों में साथ कम्बल के , तेरा गम मुझसे सटा सा रह गया.. आदमी- आदमी से दूर हो समझ आया. जाने क्यों खुद से कटा सा रह गया.. हर एक हिस्से को सबने कुरेद कर देखा. एक दिल था बेचारा जो ढका सा रह गया..

ख़ुशी भी उधार दो

बेचैन बहुत दिल है जरा सा करार दो. गम तो दिया मुफ्त में ख़ुशी भी उधार दो .. ये आखिरी अर्जी मेरी इसको जरा पढ़ लो. जीने का हौसला दो या फिर मुझको मार दो.. ऐ ज़िन्द तेरी जंग में मैं थक गया बहुत. अब जीतने दो मुझको या हिस्से में हार दो.. मैं कौन सा ज़न्नत की वकालत हूँ कर रहा. महबूब है जहाँ वही कूंच- ए- गुबार दो .. छोटा सा दिल हज़ार दर्द कैसे सहेगा. जो दर्द हैं हजार तो दिल और चार दो..

कब तक भला खुद को छले..

किसको सुने किससे कहे, अब कौन सा रस्ता गहें... तुमने सुना हर एक स्पंदन, क्यों न सुना वो मौन क्रंदन, सुनते जो तुम मन की व्यथा, होते विरत क्यों अन्यथा, टूटे थके हैरान से उजड़ी फसल के किसान से, घायल श्रवन ज्यों बाण से, यह देह दारुण दाह में, कब तक दहे, कब तक जले.. नीयत, नियति, नीति, नियम, के बन्धनों में जकडे दंग हैं, जग मूक, बधिर, अपंग है, किससे करेंगे गुहार हम, किसकी करे मनुहार हम, किसका करे आभार हम, कब तक भला रखे संयम, हर प्रश्न पर सब ठीक कह, कब तक भला खुद को छले..

हे राम ! मत आना कभी तुम यहाँ .

मत छुओ मेरे दर्द को , दर्द और होगा, मत सहलाओ मेरे ज़ख्मो को , घाव अभी फिर रिसने लगेंगे , मत हवा दो अपनी सांसों की, मेरी आँहो से धुंआ उठने लगेगा, रोक लो नज़रों को अपनी, मुझसे टकराने से, मै बरस जाऊँगी, जल भरी बदली की तरह, हे राम ! मत आना कभी तुम यहाँ . मै शिला सी यहीं पर रह पडूँगी , मै अगर पाषाण सी जडवत रही, अनुभूतियों से सौ कोस दूरी पर रहूंगी, गर बनी नारी अहिल्या, फिर नई कोई पीड़ा सहूंगी.

खुद को टटोल कर देखा

हर परत को उधेड़ कर देखा, आज फिर खुद को टटोल कर देखा. क्यों एक सूरज नहीं दिखा मुझको, सारी रात आँख खोल कर देखा . जब तलक चुप था, बड़ा अच्छा था मै, तभी बुरा हुआ जो जरा बोल कर देखा.. जिंदगी मौत से भी सस्ती लगने लगी, सरे बाज़ार जो इसका मोल कर देखा.. इक तरफ फ़र्ज़ था इक तरफ इश्क मेरा. फ़र्ज़ भारी पड़ा जो तोल कर देखा.. मजा शराब का कुछ और बढ़ गया यारों, जो इसमें खारे अश्कों को घोल कर देखा..

खुद के जैसा कोई नहीं पाया

सारी दुनिया में देख कर आया, खुद के जैसा कोई नहीं पाया .. जहाँ पे सर झुके खुद-ब-खुद मेरा , आज तक ऐसा कोई दर नहीं पाया.. लोग कहते हैं खुदा ने हमे बनाया है, मै ये कहता हूँ हमने खुदा बनाया.. जहाँ पे पांव थम गए मेरे समझो , मेरे महबूब का घर वहीँ आया.. काम आये किसी के तो जिंदगी वाजिब, नहीं समझा तो तेरी जिंदगी ये जाया है.. उतर गए थे समंदर में सीप का मोती लाने, जिसको देना था आज वो पराया है.

बहुत मार खायी पर रोया नहीं हूँ ..

मै पलकों को अपनी भिगोया नहीं हूँ, बहुत मार खायी पर रोया नहीं हूँ .. कहीं ज़ख्म सारे ना भर जाए मेरे, यही सोच कर इनको धोया नहीं हूँ.. सुना था कि चुभते हैं आँखों में सपने, इसी डर से इनको संजोया नहीं हूँ.. जो जोड़ा, बनाया वो सब छूटता है, नहीं जिसको पाया वो खोया नहीं हूँ.. मुझे गोद में आज अपनी सुला माँ, बड़ी उम्र गुज़री औ सोया नहीं हूँ..

चाँद लाना है

सितारें हैं बहुत छोटे मुझे तो चाँद लाना है , भले कश्ती मेरी टूटी समंदर पार जाना है.. तुम अपने घर के बागीचों में ही खुश हो लो, हमे सहरा के सीने पे गुले- नर्गिस खिलाना है.. दबी चिंगारी सीने में इसे खुल कर हवा दो, ज़माने से नहीं हो तुम, तुम्ही से ये जमाना है.. अब तोड़ दो बरसों की खामोशियाँ अपनी, खामोशियाँ को तोड़ कर अब क्रांति लाना है.. यह देश घायल है, बुलाता है तुम्हे सुन लो , हर घाव पर इसके तुम्हे मरहम लगाना है..

मेरे तट पर बाँध न बांधों

दुर्गम से भी दुर्गम राहें , पार मुझे कर जाने दो , मेरे तट पर बाँध न बांधों , बहती हूँ बह जाने दो .. मौन रही मैं कल जब तक जग ने इसको स्वीकृति समझा ? मेरी निर्झरता की कल - कल में , सत्य मुझे कह जाने दो.. उदगम हुआ कहाँ से मेरा, तनिक जरा खुद से पूछो ? निकली क्या मै जटा से शिव के, शिव को ही बतलाने दो.. मेरा गंतव्य पूंछ रहे हो , रे मूर्ख ! मै रचना सृष्टि की, समक्ष अथाह सागर की बाँहें ,

चाँद लाना है

सितारें हैं बहुत छोटे मुझे तो चाँद लाना है , भले कश्ती मेरी टूटी समंदर पार जाना है.. तुम अपने घर के बागीचों में ही खुश हो लो, हमे सहरा के सीने पे गुले- नर्गिस खिलाना है.. दबी चिंगारी सीने में इसे खुल कर हवा दो, ज़माने से नहीं हो तुम, तुम्ही से ये जमाना है.. अब तोड़ दो बरसों की खामोशियाँ अपनी, खामोशियाँ को तोड़ कर अब क्रांति लाना है.. यह देश घायल है, बुलाता है तुम्हे सुन लो , हर घाव पर इसके तुम्हे मरहम लगाना है..

उड़ान बाकी है

हमारे हौसलों में अब भी उड़ान बाकी है, जमीन नाप ली अब आसमान बाकी है.. चला दो आखिरी तरकश का तीर भी अपना, अभी जिंदा हूँ मैं, थोड़ी सी जान बाकी है.. सभी किस्से, कहानी, अब पुराने हो चुके है, जिसे सुन न सका जमाना वही उनबान बाकी है.. सारे रिश्तों को पीछे छोड़ कर आया था मैं, फिर दिल में कोई मेहमान बाकी है.. उम्र की सीढ़ियों पे चढ़ के थक गया यारों, जरा आराम कर लूँ अभी तो ढलान बाकी है.. मेरे हिस्से की दो गज ज़मीन भी नहीं दी तूने, बड़ी शान से कहा की अभी दो जहाँ बाकी है.. बहुत पुरानी अदावत है, अपनी किस्मत से, मुझमे सब्र है ज्यादा, या फिर तेरी ही ठान बाकी है..

किरदार

अपने जैसा कोई किरदार कहाँ मिलता है , इस ज़माने में ग़मों का खरीदार कहाँ मिलता है. चाय के प्याले ख़त्म होते ही चला गया वो , मेरी दास्तान सुने ऐसा यार कहाँ मिलता है.. बहुत दौलत, बहुत शोहरत तो कर लिया मैंने, रात को चैन से सोऊँ , वो करार कहाँ मिलता है.. सूख चुके आँखों के आंसूं अब तो मेरे , कोई बता दे आबे- शार कहाँ मिलता है.. मेरे सब्र की पैमाइश तो कर ली तूने, यही बता के ये इंतज़ार कहाँ मिलता है..

थोड़ा आराम हो जाये..

अब ये किस्सा तमाम हो जाये, इसका कोई तो अंजाम हो जाए.. जुड़ जाये मेरा नाम तेरे साथ तो क्या, इसी बहाने मेरा नाम बदनाम हो जाये .. हर इक खता मेरी ही थी ? मेरे खुदा, किसी और के सर भी कुछ इल्जाम हो जाए.. इतना यकीं है की तू जमीं पे आने से रहा, मेरे ही नाम का तेरा कोई पैगाम हो जाए.. बिखरा पड़ा है घर मेरी जिंदगी की तरह , फुरसत मिले तो थोड़ा सा कुछ काम हो जाये.. इसी उम्मीद पे मै जी गया ज़िन्द सारी, बाद मर के ही सही थोड़ा आराम हो जाये..

नाकाम सी ख्वाहिश

कल तुम्हारे इश्क का पैमाना, इस कदर भर गया कि, मैं... छलक कर जमीन पर आ गिरी..... तुमने देखा मुझे गिरते हुए, बेसाख्ता चाहा समेटना मुझको, अपने लबों से लगाना मुझको, मैं इतने में ही खुश थी कि, मुझे समेटने कि नाकाम सी ही सही, कोशिश तो कि तुमने .. आज तुम्हारा पैमाना खाली है, तुम तलबगार हो ,एक बूँद के लिए तुम्हे उस रोज जमीन पर, छलक कर गिरी मेरी याद तो आई, मैं इतने में ही खुश हूँ कि , मेरी नाकाम सी ख्वाहिश आज भी है तुम्हें...........

फिसल जाती है,

जिंदगी हर एक कदम पर फिसल जाती है, लडखडाती है और खुद ही संभल जाती है.. है तमन्ना खता, आरजू भी है गुनाह , लाख रोको ये हसरत मचल जाती है.. दो कदम और जो चलने का फैसला करते, वक़्त के साथ ये किस्मत भी बदल जाती है .. उनकी यादे सजी है आज भी पलकों में मेरी, जिंदगी बस इसी सहारे पे बहल जाती है.. बाजियां इश्क की ना खेलना आया हमको, हर एक चाल हमारी ही गलत जाती है.. बड़ी मुद्दत हुई देखा नहीं तुमको कब से, उम्र के साथ ये ख्वाहिश भी पिघल जाती है..

घर लौट कर आया नहीं गया..

जिस राह चल चुके थे , कदम लौटाया नहीं गया, अब भी वहीँ खड़ीं हूँ , घर लौट कर आया नहीं गया.. रस्मों - रिवाज़ दुनिया के उठाया नहीं गया , वादा तो कर लिया मगर निभाया नहीं गया.. गिनती थी दोस्तों में न दुश्मनों में थे शुमार मेरा कसूर क्या मुझे कुछ बनाया नहीं गया.. पशोपेश में हकीम मुझे देख कर हुआ, बीमार में तो दिल कहीं पाया नहीं गया.. मैंने कहा हकीम परेशान यूँ न हो, रखा है संभाल कर किसी ने , ज़ाया नहीं गया..

एक राह बंद है तो

चलो कुछ यूँ भी मोहब्बत निभाया जाये , दिल के ज़ज्बात को चेहरे पे न लाया जाये.. टूट कर गिरते सितारों से दुआ क्या मांगे? किसी तारे को फ़लक पर भी टिकाया जाए.. साहिल पे खड़े होकर लहर गिनने का सबब क्या, मज़ा तो तब हो जब लहरों में समाया जाए .. कौन कहता है कि जालिम है जमाने वाले, कभी खुद को भी ज़माने का बनाया जाए.. एक राह बंद है तो सौ रास्ते खुल जायेंगें, जाना कहाँ है एक कदम तो बढाया जाए.. रात भर जलते रहे अंधेरों में चिरागों कि तरह, हो गयी सहर अब इनको तो बुझाया जाए..

सुर्ख गुलाब रखता है.

वो हर एक शाम चिरागों को बुझा के रखता है, हर एक रात वो इंतजार- ए- माहताब रखता है.. हर एक रात की पहर जो गुजारी जाग कर उसने , कैसा आशिक है हर एक पहर का हिसाब रखता है.. हर सवाल मेरे हिस्से मे डाल कर बैठ जाता है, मै जानती हूँ की वो हर एक जवाब रखता है.. वो अपने हिस्से की खुशियाँ शहर में बाँट आता है, इसी में खुश है की वो अहले सबाब रखता है.. बड़े हैरान है फ़रिश्ते रोज मेरी कब्र देखकर , वो कौन कब्र पर मेरी रोज सुर्ख गुलाब रखता है..

तू ही माझी है..

बड़ी दूर किनारे है तो क्या ? संगी, साथी ना कोई सहारे है तो क्या ? तू एक अकेला काफी है , तू ही नैया, पतवार तू ही, और तू ही माझी है.. रात से न घबराना प्यारे........ चाँद निकल ही आएगा, चाँद नहीं आया तो क्या , तारा राह दिखायेगा, अब छोड़ दे ऊँगली किस्मत की, अब कर्म बांह को थाम के चल, पीछे क्या छूटा क्या सोचे , आगे क्या पायेगा अब ये सोचे, अब चलाचल पथ ओर विजय तू, तू ही दर्द का देने वाला, लेने वाला तू ही है, आदि अंत तक तू ही अपने दुःख का साथी है, तू ही नैया,पतवार तू ही और तू ही माझी है..