बुधवार, 25 सितंबर 2013

बहुत मार खायी पर रोया नहीं हूँ ..

मै पलकों को अपनी भिगोया नहीं हूँ, बहुत मार खायी पर रोया नहीं हूँ .. कहीं ज़ख्म सारे ना भर जाए मेरे, यही सोच कर इनको धोया नहीं हूँ.. सुना था कि चुभते हैं आँखों में सपने, इसी डर से इनको संजोया नहीं हूँ.. जो जोड़ा, बनाया वो सब छूटता है, नहीं जिसको पाया वो खोया नहीं हूँ.. मुझे गोद में आज अपनी सुला माँ, बड़ी उम्र गुज़री औ सोया नहीं हूँ..

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