बुधवार, 25 सितंबर 2013

ख़बर न लगी

तारा मंडल से बिछड़ कर माँ की पीड़ा में पीड़ित हो , कब धरती पर उतर चली ख़बर न लगी । आह विधाता ! सुन समेत स्वर थोड़ा सा बस सिहर चली खबर न लगी । बचपन में ही हुई किशोरी, और किशोरपन में युवती, ऐसा लगता है मैं पीछे , मुझसे आगे मेरी उमर चली ख़बर न लगी। आँखों से नापते - नापते, आसमान की उचाइयां , तुम्हारे ह्रदय की गहराई में, जाने कब मैं उतर चली, ख़बर न लगी। उड़ते उड़ते हवा के संग, डोर से टूटी हुई पतंग , तुम्हारे आँगन में कब आ गिरी ख़बर न लगी। तुम्हारे वंश वृद्धि के लिए मृत्यु की पतली पगडंडियों से , कितनी बार गुजर कर जीवन की राह में जा मिली ख़बर न लगी । तुम्हारे घर के तिनके - तिनके जोड़ती कब त..

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