जिंदगी ठहरी रही और वक्त था चलता रहा। मैं गए बरसों की तरह हाथ बस मलता रहा॥ हम अंधेरों में उलझ कर रास्ता भूला किए। कब खिला सूरज न जाने और कब ढलता रहा॥ वक्त पर बरसा था सावन प्यास धरती की बुझी। एक मैं था बारिशों की बूँद में जलता रहा॥ इस कदर तन्हाई मुझको रास अब आने लगी। अपनी परछाईं से भी मैं भागता छुपता रहा॥ ख्वाहिशों ने ख्वाब ने जब आखिरी हिन्च्की भरी। मई खड़ा बेबस उन्हें फ़िर देर तक तकता रहा॥ क्या दिखाएँ क्या छिपायें दिल के ज़ज्बातों को हम। जाने कितने हिस्सों में मैं टूटता बंटता रहा॥
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