दुर्गम से भी दुर्गम राहें , पार मुझे कर जाने दो , मेरे तट पर बाँध न बांधों , बहती हूँ बह जाने दो .. मौन रही मैं कल जब तक जग ने इसको स्वीकृति समझा ? मेरी निर्झरता की कल - कल में , सत्य मुझे कह जाने दो.. उदगम हुआ कहाँ से मेरा, तनिक जरा खुद से पूछो ? निकली क्या मै जटा से शिव के, शिव को ही बतलाने दो.. मेरा गंतव्य पूंछ रहे हो , रे मूर्ख ! मै रचना सृष्टि की, समक्ष अथाह सागर की बाँहें ,
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