बुधवार, 25 सितंबर 2013

मौन स्वीकृति

एक छत के नीचे रहकर, दोनों बरसों से अपरिचित, भिन्न एक दूजे से लेकिन, एक दूजे को समर्पित। आह भी है, चाह भी है, शीत भी है, दाह भी है, मंजिले क्यों कर मिले, हमराह भी गुमराह भी हैं। ''संवेदना की वेदना से हो रहे है क्यों अचंभित'' . व्यर्थ के बंधन में ढूंढे , अर्थ अपनी जिंदगी का किश्तों- किश्तों- में चुकाते क़र्ज़ अपनी जिंदगी का । ''भाग्य के निर्णय ने पायी आज फ़िर एक मौन स्वीकृति ''

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